Sam Bahadur Review सैम बहादुर देश और देशभक्ति की गहन बुनाई फिल्म
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नई दिल्लीः 1 दिसंबर 23 Sam Bahadur Vicky Kaushal l एक बच्चे के मां-बाप ने चिल्लाते हुए कहा कि उसका जो नाम रखा गया है, वह बताता है कि रात में एक चोर का चोरी करने आया था। अब सवाल है कि बच्चे का ऐसा क्या ‘यूनिक’ नाम रखा जाए? अगले सीन में एक आर्मी ऑफिसर, नए से कलररूट से अपना नाम पूछता है, तो नया लड़का उसका सरनेम भूल जाता है। भारतीय सेना की गोरख रेजिमेंट के इस लड़के के साथी का नाम है- सैम बहादुर. (Sam Bahadur ) वो नाम, जो भारत के सैन्य इतिहास में सदैव-हमेशा अमर रहेगा। Sam Bahadur Review Sam Bahadur is a deeply woven film of country and patriotism.
यहां से आप एक जर्नी पर निकल सुपरमार्केट हैं, जिसका शिपमेंट डायरेक्टरी मेघना गुलजार ने बड़े दिलचस्प अंदाज में बनाया है। बायोपिक एक व्यक्ति के जीवन की कहानी ही तो होती है। ‘सैम बहादुर’ भी ऐसी ही कहानी है, लेकिन अनोखी यह है कि सैम की कहानी एक देश की भी कहानी है। आज़ादी की पहली सांस लेने वाले एक देश की कहानी, जो अभी अपने सिद्धांत पूरी ही नहीं करती, बल्कि तय भी करती हैं।
इस कहानी को देखने में आपका जोखिम भी था… पुराने वक्त की कहानी है, पॉलिटिक्स का भी स्पर्श है। ऊपर से देश के ललकार और पॉलिटिकल नेचर वाला सिनेमा भी कुछ समय से उफान पर है। तो कहीं ये कहानी कान न काटने लगे!
निर्देशक मेघना गुलजार Meghna Gulzar ने इन सभी मूर्तियों को पेश करते हुए एक ऐसी फिल्म film तैयार की है, जो भावनाओं के विस्फोट के दम पर दर्शकों के दिलों पर राज करती है, राजनीतिक-देशभक्ति में तार-बायोपिक फिल्मों के बीच एक ताजा, नया सा जारी किया गया है। देश की आज़ादी से लेकर, पाकिस्तान के साथ जंग में बांग्लादेश Bangladesh at war with Pakistan के निर्माण तक, भारत की कई बड़ी घटनाएँ सैम के जीवन से जुड़ी कहानियाँ। मगर इन घटनाओं को टोकन में मेघना चित्रा सिनेई मसाले का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। वो सैम की विशिष्टता से ही रंग बिरंगे इन आख्यानों को चित्रित करते हैं। और 7 किलों से छिपा बदन लेकर लहुलुहान ने जो स्पेशल कहा- ‘कुछ नहीं, एक खच्चर ने लात मार दी’; उसकी टक्कर का हीरोइज्म वाला मसाला सिनेमा के बाजार में भी कहां उपलब्ध है!
दर्दों से सहानुभूति स्मृति
एक और चीज जो मेघना ने बहुत बेहतरीन की है, वो है कहानियों को उनकी बराबरी पर रखना, उन्हें अपने हीरो के पक्ष में न दिखाना। सैम बहादुर में कई स्टॉकिंग्स पर मानेकशॉ नेताओं के बीच हैं। लेकिन मेघना ये नहीं करती कि अपने सोल्जर को चमकाने के लिए वो नेताओं के किरदार भद्दे कर दें। ना ही वो लड़ाई में दूसरी तरफ के स्टेबल सैनिकों soldiers को एक मजबूत ढांचे में बांधे गए हैं।
फिल्म में हमें दिखता है कि कैसे एक भारत के सैनिक Soldiers of India अब दो देशों के सैनिकों में बंटे हुए हैं। मेघना इस इमोशन को मेंटेन करती हैं कि कल तक बराक में साथ किस्से सुन रहे दो दोस्त जब सरहद की दो तरफ मिलेंगे तो उनका दिल क्या कह रहा होगा। लेकिन फिर भी उन्हें रॉक की तरह डेट करना होगा. न कि वो एक दूसरे को देखे ही गॉलियन्स एवरेजर्स। इस तरह के सैमुअल और नॉन-क्रिटा पैंटरों से बच नेता ‘सैम बहादुर’ की सबसे बड़ी फिल्में हैं। अच्छा सिनेमेटोग्राफी, उस दौर के खाते से 60-70 साल पुरानी कहानी में दिखने वाली एक ऑथेंटिक फिलिंग और अच्छी लाइटिंग जैसी तकनीकी वस्तुएं फिल्म में मजबूत हैं।
मेघना, देश की कहानी से सैम मानेकशॉ की कहानी नहीं निकाली गई। वो सैम का किरदार बुने वाली फिल्म के चश्मे उधेड़ना शुरू कर देते हैं। और आप देखेंगे कि इस कहानी में देश और राष्ट्र की कितनी गहनता है। मेघना की फिल्म भारत के पहले फील्ड मार्शल, देश के सबसे कद्दावर सोलजर्स में से एक सैम मानेकशॉ की पर्सनैलिटी के रंग में ही झलकती है। ये आज उन्हें सोशल मीडिया पर चल रहे हाइपर-देशभक्ति के स्थिर से कोई फर्क नहीं पड़ता। सैम के एसोसिएट और एसोसिएट फर्म, शानदार हाजिर जवाबी, आंख के बिल्कुल सटीक नमूने से बात कह रब-रुतबा फिल्म को बनाने वाला सबसे बड़ा धमाका है।
अभिनय-परफॉर्मेंस
सैम के किरदारों को उनके प्रोटोटाइप पेंटिंग में दिखाया गया है, जिसका कमाल जिस तरह से विकी कौशल ने किया है, वो आपको स्क्रीन से चिपकाए रखता है। विकी कौशल अब अपने अपने टैलेंट तराशने के उस स्तर तक पहुंच गए हैं, जहां शायद ही कभी कोई सामान्य बात नजर आती है। ‘सैम मानेकशॉ’ भी उनका नया शाहकार है। फिल्म में, कहानी में, स्क्रीनप्ले में गलतियां नजर आ सकती हैं, लेकिन विकी कौशल Vicky Kaushal के काम में कोई कमी नहीं है।
परफॉरमेंस के डिपार्टमेंट में विक्की के लीड रोल से लेकर बाकी कास्ट का काम भी एक मजबूत पक्ष है. सिलू मानेकशॉ Silu Manekshaw के रोल में सान्या मल्होत्रा Sanya Malhotra भी अपने काम के दमदार लेवल को बनाए रखती हैं. इंदिरा गांधी बनीं फातिमा सना शेख हों, या याह्या खान बने मोहम्मद जीशान अयूब. जवाहरलाल नेहरू के रोल में नीरज कबी हों या सरदार पटेल का किरदार कर रहे गोविंद नामदेव. सबका काम फिल्म को ऊपर उठाता है. हालांकि, कुछेक किरदारों का प्रोस्थेटिक मेकअप थोड़ा ध्यान बंटाने वाला है.
‘सैम बहादुर’ दमदार एक घंटे लंबी फिल्म है, जो ज्यादातर समय आपको महसूस नहीं होता। फर्स्ट हाफ में फिल्म में कुछ हद तक तेजी से बढ़ोतरी होती है लेकिन शायद इसलिए कि इसमें सैम की लाइफ के कई हिस्से तेजी से कवर होते हैं। इंटरवल के बाद फिल्म जैसे ही स्लो स्लो में ‘बढ़ते चलो’ गाना आता है। भारतीय सेना की अलग-अलग रेजिमेंटों के घोष इस गाने में दिए गए हैं और रोंगटे शेयर कर देते हैं। बॉलीवुड के दिग्गज गीतकार गुलजार ने इस बार के गाने में लिखा है ऐसा, ‘प्रिय रोंगटे हो जाते हैं’
हालाँकि, अंत में ब्यूलर फिल्म का मोमेंटम लिटिल धीमा जरूर पड़ा है। क्लाइमेक्स भी छोटा और ऊर्जावान हो सकता है। फिल्म में एक छोटी सी कमी यह भी है कि सैम के सेना से पहले वाले दिनों को लिटिल और दिखाया जा सकता था। उनकी लड़कपन, कॉलेज के दिनों से लेकर अगर उनकी मजेदार-लाजवाब अंदाज की हल्की झलक वाली फिल्म आती है तो और मजा आता है। मगर अभी भी ‘सैम ब्रेव’ टिकटों पर आपका खर्चा खर्च का दम लिखा है। मेघना गुलजार और लॉरेंस कौशल का सान्निध्य आपको एक हीरो की कहानी बड़े मजेदार अंदाज में मिलेगा